पहले...मैं अपनी इच्छाओं में
थी तुम्हारी...
अब...अपने संकल्प से
हूँ तुम्हारी...
ये दोनों ही सूरतें एक सी नहीं......
एक बार लौट रही हूँ वहाँ
जहां से चली थी मैं पीछे तुम्हारे
क्यूंकि...
इच्छाओं की कोई सीमा नहीं
और संकल्प...
वो तो बंधा होता है अपनी परिधि, अपनी अवधि से.....
क्या तुम आओगे लेने मुझे...???
आ सको तो आना समय रहते
करीब मेरे...
चाहती हूँ कि इस बार...
तुम थामो हाथ मेरा
और ले चलो साथ अपने
इच्छाओं,
संकल्पों की परिधि की,
सीमाओं से परे.....
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