Thursday, 5 January 2012

मत रोको मुझे...


उड़ना है, वहाँ दूर आसमान में मुझे
डूब जाना है सागर की गहराई में
भर लाने हैं आँचल में अपने
चाँद, तारे तमाम...

सूरज की रौशनी
चाँद की चांदनी 
कटोरी भर भर कर पी जाना चाहती हूँ मैं...

अरे अरे...रूठते क्यूँ हो ?
तुम्हें भी
सूरज परोसूंगी, चाँद की थाली में

सितारों को चुन चुन कर
लड्डू बना खिलाऊँगी तुम्हें

ले आउंगी तुम्हारे लिए भी
छोटी छोटी, रंग बिरंगी
प्यारी सी मछलियों के सतरंगी सपने

हाँ हाँ..मत हंसो मुझ पर
मालूम है मुझे
नहीं कर पाउंगी ऐसा कुछ भी

पर...
कल्पना के घोड़े दौड़ाकर 
इन एहसासों को महसूस तो कर ही सकती हूँ न ?
इस पर तो कोई पाबंदी नहीं है ?

चलो तुम भी
जल्दी करो
मेरी कल्पनाओं के पर लगा
उड़ चलो साथ मेरे :)

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